चलो कुछ नन्हा कर जाएँ
मिटटी की गाड़ी दौडाएं
कपडों को कीचड पहनायें
दांतों में टॉफी चिपकायें
चलो कुछ बूढे बन जाएँ
पके आम से मीठे हो जाएँ
आखों में मोटी चिपकायें
पापा के पापा बन जाएँ
चलो हम अविरल बन जाएँ
लिफाफों में ख़ुद को दफनायें
तुम सब में पहचानें जाएँ
यादों को मतलब दे जाएँ
रविवार, फ़रवरी 15, 2009
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