मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

ईंट

कभी अनदेखे रास्तों ने तो कभी अनचाहे हमराहों ने
बेचैन किया मेरी तमन्नाओं को..

की जैसे एक बूँद गिरी हो पक्की ईंट पर
आई भी, समाई भी, और छोड़ गयी लालायित मुझे..

मिटटी थी मै जलने से पहले...
पानी डालो तो बह जाने वाली॥