मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

नग्न

अँधेरा भी ओढा नफ़ासत भी पहनी
कभी सोच-समझ भी ख़ुद को पहनाया
कपड़े कपड़े होते हैं चमड़ी चमड़ी...

बुधवार, अप्रैल 22, 2009

बेअदब

ख्वाबों की सवारी है तो असलियत के नंगे पैर भी
आगे बेखौफ चौराहे है तो पीछे गरम सड़कें भी..
ज़िन्दगी हूँ मै... बेअदब रास्तों पर घिसलती...

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

मोल

मोल लगा कर अपने फ़न का क्या खोया और क्या पाया है
एक बादामी शाम गई और हाथ मेरे बस नाम आया है
नाम बिकते हैं शायद बाज़ारों में....

तुमसे बिछडे साल गए अब यादें भी धुंधलाती हैं
यादों में ढूंढूं तुमको तो याद स्वयं खो जाती है
पलकें घुलती हैं तब अंधियारों में...

एक शाम जब थक कर सूरज धरती में छिप जाता है
जब तारे बातें करते हैं और चाँद अलग पड़ जाता है
गूंगी साँसे सिहराती हैं तब कानों में....