श्वेत अम्बर से सजाया करिया तन को...
पीत वर्णित रस रंजित मन को
नग्न सांसें वृस्मिति कारक॥
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का करूं मोहन अइयो जो हमरे घर तुम॥
का बतलाऊं तुमका पुछिहो हमसे प्रश्न तुम ॥
मोहन हौ अबहूँ तुम हम रहे कोऊ कबहूँ
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हाँ जलिबय जब गंगा गोद हम
तब ना हाथ बंधियों अपने तुम
आइबे धुआं बन जब तुम तक
राख छोड़ आपन करमन की पाछे
तब न पूछ्यो प्रश्न हमसे तुम
बस जैबे तोहरे चरनन में हम ॥
शुक्रवार, जनवरी 22, 2010
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