शनिवार, जनवरी 26, 2008

ख़ाक

मुसाफिर बनकर भी ज़मीन्फरोस्त रहा मैं,
अब ज़मीन ही मेरा सफर है...
मौसम दर मौसम...ख्वाहिश दर ख्वाहिश....

रोज़ आते हैं रिंदेयहाँ..जाने किस किस से खफा....
गो खफानावाज़ होता तो हम भी चादर चढा आते
पर चादर तो नही बस इक कफ़न है..मेरा लिबास--ख़ाक ...

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