चलो कुछ नन्हा कर जाएँ
मिटटी की गाड़ी दौडाएं
कपडों को कीचड पहनायें
दांतों में टॉफी चिपकायें
चलो कुछ बूढे बन जाएँ
पके आम से मीठे हो जाएँ
आखों में मोटी चिपकायें
पापा के पापा बन जाएँ
चलो हम अविरल बन जाएँ
लिफाफों में ख़ुद को दफनायें
तुम सब में पहचानें जाएँ
यादों को मतलब दे जाएँ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
nice!
vicharon ke aviral bahav ko thamne mat dena kabhi...
jivan sarthak tabhi jab hum bane abadh aviral avinashi.........
dear i met you in swimming pool today
naice work
keep it up
Major Peeyush Pani Awasthi
ppawasthi@gmail.com
एक टिप्पणी भेजें