बुधवार, जून 10, 2009

अबू

आवाज़ सवाल और खामोशी जवाब
टूटन बेइख्तियार और जिंदगानी बेवजह
कहीं टूटते सपने तो कहीं ज़िन्दगी बेसबब..

यादों में ही तो थे कल भी तुम...
हाँ बस यादें याद नही आती थीं कल...
लम्हे लफ्जों में बयान तो नही होते न दोस्त...

मिलेंगे काल्विन के किसी कोने में फिर वैसे ही॥
यादों में ही सही..
खुदा हाफिज़ मेरे यार

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