एक सितारा इक दिन टूटा और जा बैठा कोठे पे
कोठी जाकर मैंने पाया कुछ दिल चुप चुप रोते से
तारे की माँ खोज में इक दिन मेरे घर भी आएगी
यही सोच कर हमने सबको जाने कहाँ छिपाया भी
तारे तुम्हरे आंसू थे और कोठी शायद यादें हों,
आंसू सूखे सदियाँ बीतीं फिर मेरी छत टपकाई क्यूँ...
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टपकती आज भी मेरी छत
बह जाता है आज भी चूना
शायद दीवारें आज भी प्यासी हैं...
रविवार, सितंबर 27, 2009
शनिवार, सितंबर 26, 2009
रंग
तरसती निगाहें खामोश जुबां और धड़कती साँसे...ये कैसे खेल हैं मौला
जो पंख तुझको सौप दिए क्यूँ उनपे रंग चढ़ आता है मौला...
तमन्ना बन कर कोई फिर आज मेरी रूह चुराता है मौला...
जो पंख तुझको सौप दिए क्यूँ उनपे रंग चढ़ आता है मौला...
तमन्ना बन कर कोई फिर आज मेरी रूह चुराता है मौला...
बुधवार, सितंबर 09, 2009
सबब
सैर पे निकले थे दो नंगे पाँव
पीछे छोड़ एक गीले आँचल की छाँव
कभी मिटटी तो कभी पक्की सड़क की गोद में
दौडे हम कभी ख़ुद की कभी रहबर की खोज में...
सुनते हैं दौड़ते रहना ही ज़िन्दगी का सबब है...मर्म है...
हाँ मंजिलों के इस बाज़ार में ख्वाहिशें हैं...शर्म है...
होंगे कभी शर्मसार मेरे पाँव बीच बाज़ार में...
कहते हैं बस गई है मेरी रूह इसी इंतज़ार में॥
पीछे छोड़ एक गीले आँचल की छाँव
कभी मिटटी तो कभी पक्की सड़क की गोद में
दौडे हम कभी ख़ुद की कभी रहबर की खोज में...
सुनते हैं दौड़ते रहना ही ज़िन्दगी का सबब है...मर्म है...
हाँ मंजिलों के इस बाज़ार में ख्वाहिशें हैं...शर्म है...
होंगे कभी शर्मसार मेरे पाँव बीच बाज़ार में...
कहते हैं बस गई है मेरी रूह इसी इंतज़ार में॥
शुक्रवार, सितंबर 04, 2009
इल्म (ilm)
गुस्ताख दिल की कंपकपाती ज़ुम्बिशें
बतलाती हैं लहू अभी भी फिसलता है मेरी रगों में
सुनते हैं लाशें भी साँस लेती हैं आज कल
इल्म ही बांटा इल्म ही बटोरा हमेशा
कहते हैं इल्म के कटोरे टपकते हैं फाकामस्ती में
मेरा कटोरा मेरी भीख...मेरी ज़िन्दगी मेरी सीख...
बतलाती हैं लहू अभी भी फिसलता है मेरी रगों में
सुनते हैं लाशें भी साँस लेती हैं आज कल
इल्म ही बांटा इल्म ही बटोरा हमेशा
कहते हैं इल्म के कटोरे टपकते हैं फाकामस्ती में
मेरा कटोरा मेरी भीख...मेरी ज़िन्दगी मेरी सीख...
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