रविवार, सितंबर 27, 2009

आंसू

एक सितारा इक दिन टूटा और जा बैठा कोठे पे
कोठी जाकर मैंने पाया कुछ दिल चुप चुप रोते से

तारे की माँ खोज में इक दिन मेरे घर भी आएगी
यही सोच कर हमने सबको जाने कहाँ छिपाया भी

तारे तुम्हरे आंसू थे और कोठी शायद यादें हों,

आंसू सूखे सदियाँ बीतीं फिर मेरी छत टपकाई क्यूँ...

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टपकती आज भी मेरी छत

बह जाता है आज भी चूना
शायद दीवारें आज भी प्यासी हैं...



1 टिप्पणी:

Yash Mahendra ने कहा…

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