एक सितारा इक दिन टूटा और जा बैठा कोठे पे
कोठी जाकर मैंने पाया कुछ दिल चुप चुप रोते से
तारे की माँ खोज में इक दिन मेरे घर भी आएगी
यही सोच कर हमने सबको जाने कहाँ छिपाया भी
तारे तुम्हरे आंसू थे और कोठी शायद यादें हों,
आंसू सूखे सदियाँ बीतीं फिर मेरी छत टपकाई क्यूँ...
-------
टपकती आज भी मेरी छत
बह जाता है आज भी चूना
शायद दीवारें आज भी प्यासी हैं...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
Kya baat hai sahab! I'm featuring your blog on mine!
एक टिप्पणी भेजें