बुधवार, अक्टूबर 14, 2009

ख्वाहिशें

तुम्हारी धडकनों ने उफनाय था जिनको
मेरी आंखों ने बहाया था जिनको

कैसे कह दूँ की वो जज़्बात नही,
इतना कुछ है पर कहने को कोई बात नही

ख्वाहिशें हैं सब...
स्त्री तन समान, ज़िन्दगी के लिबास में ढकी छिपी
पंचवटी में सीता का हिरन भी हैं
कामायनी में मनु का चंचल मन भी हैं

आज भी हैं कल भी हैं
कहते हैं ख्वाहिशें मरती नही
भूत बन मिटने को तड़पती हैं बेबस॥

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