मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

ईंट

कभी अनदेखे रास्तों ने तो कभी अनचाहे हमराहों ने
बेचैन किया मेरी तमन्नाओं को..

की जैसे एक बूँद गिरी हो पक्की ईंट पर
आई भी, समाई भी, और छोड़ गयी लालायित मुझे..

मिटटी थी मै जलने से पहले...
पानी डालो तो बह जाने वाली॥

बुधवार, अक्टूबर 14, 2009

ख्वाहिशें

तुम्हारी धडकनों ने उफनाय था जिनको
मेरी आंखों ने बहाया था जिनको

कैसे कह दूँ की वो जज़्बात नही,
इतना कुछ है पर कहने को कोई बात नही

ख्वाहिशें हैं सब...
स्त्री तन समान, ज़िन्दगी के लिबास में ढकी छिपी
पंचवटी में सीता का हिरन भी हैं
कामायनी में मनु का चंचल मन भी हैं

आज भी हैं कल भी हैं
कहते हैं ख्वाहिशें मरती नही
भूत बन मिटने को तड़पती हैं बेबस॥

रविवार, सितंबर 27, 2009

आंसू

एक सितारा इक दिन टूटा और जा बैठा कोठे पे
कोठी जाकर मैंने पाया कुछ दिल चुप चुप रोते से

तारे की माँ खोज में इक दिन मेरे घर भी आएगी
यही सोच कर हमने सबको जाने कहाँ छिपाया भी

तारे तुम्हरे आंसू थे और कोठी शायद यादें हों,

आंसू सूखे सदियाँ बीतीं फिर मेरी छत टपकाई क्यूँ...

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टपकती आज भी मेरी छत

बह जाता है आज भी चूना
शायद दीवारें आज भी प्यासी हैं...



शनिवार, सितंबर 26, 2009

रंग

तरसती निगाहें खामोश जुबां और धड़कती साँसे...ये कैसे खेल हैं मौला
जो पंख तुझको सौप दिए क्यूँ उनपे रंग चढ़ आता है मौला...
तमन्ना बन कर कोई फिर आज मेरी रूह चुराता है मौला...

बुधवार, सितंबर 09, 2009

सबब

सैर पे निकले थे दो नंगे पाँव
पीछे छोड़ एक गीले आँचल की छाँव

कभी मिटटी तो कभी पक्की सड़क की गोद में
दौडे हम कभी ख़ुद की कभी रहबर की खोज में...

सुनते हैं दौड़ते रहना ही ज़िन्दगी का सबब है...मर्म है...
हाँ मंजिलों के इस बाज़ार में ख्वाहिशें हैं...शर्म है...

होंगे कभी शर्मसार मेरे पाँव बीच बाज़ार में...
कहते हैं बस गई है मेरी रूह इसी इंतज़ार में॥

शुक्रवार, सितंबर 04, 2009

इल्म (ilm)

गुस्ताख दिल की कंपकपाती ज़ुम्बिशें
बतलाती हैं लहू अभी भी फिसलता है मेरी रगों में
सुनते हैं लाशें भी साँस लेती हैं आज कल

इल्म ही बांटा इल्म ही बटोरा हमेशा
कहते हैं इल्म के कटोरे टपकते हैं फाकामस्ती में
मेरा कटोरा मेरी भीख...मेरी ज़िन्दगी मेरी सीख...

बुधवार, जून 10, 2009

अबू

आवाज़ सवाल और खामोशी जवाब
टूटन बेइख्तियार और जिंदगानी बेवजह
कहीं टूटते सपने तो कहीं ज़िन्दगी बेसबब..

यादों में ही तो थे कल भी तुम...
हाँ बस यादें याद नही आती थीं कल...
लम्हे लफ्जों में बयान तो नही होते न दोस्त...

मिलेंगे काल्विन के किसी कोने में फिर वैसे ही॥
यादों में ही सही..
खुदा हाफिज़ मेरे यार

मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

नग्न

अँधेरा भी ओढा नफ़ासत भी पहनी
कभी सोच-समझ भी ख़ुद को पहनाया
कपड़े कपड़े होते हैं चमड़ी चमड़ी...

बुधवार, अप्रैल 22, 2009

बेअदब

ख्वाबों की सवारी है तो असलियत के नंगे पैर भी
आगे बेखौफ चौराहे है तो पीछे गरम सड़कें भी..
ज़िन्दगी हूँ मै... बेअदब रास्तों पर घिसलती...

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

मोल

मोल लगा कर अपने फ़न का क्या खोया और क्या पाया है
एक बादामी शाम गई और हाथ मेरे बस नाम आया है
नाम बिकते हैं शायद बाज़ारों में....

तुमसे बिछडे साल गए अब यादें भी धुंधलाती हैं
यादों में ढूंढूं तुमको तो याद स्वयं खो जाती है
पलकें घुलती हैं तब अंधियारों में...

एक शाम जब थक कर सूरज धरती में छिप जाता है
जब तारे बातें करते हैं और चाँद अलग पड़ जाता है
गूंगी साँसे सिहराती हैं तब कानों में....

सोमवार, मार्च 30, 2009

मेरा बचपन

गीली साँसों सा महकाता
कल कल आंसू नदी बहाता
शेरू की पूँछ में खो जाता
मेरा बचपन

याद आती नानी की पुडिया
एक गन्ना और इक गुडिया
रेल की पटरी उड़ती चिडिया
मेरा बचपन

इक डिबिया में जुगनू पाले
तितली को भी दाने डाले
जब घूमे मिटटी को साने
मेरा बचपन

पापा के स्कूटर की सीट
मम्मी की गोदी में नींद
साइकिल की घंटी सा स्वीट
मेरा बचपन

:-)

शुक्रवार, मार्च 27, 2009

ऊनी मोजा

एक डोर है हमसे तुम तक और एक फासला है तय करना |
एक पगडण्डी है टूटी सी और तमाम क्यारियों से है गुज़रना ||

एक खोया मोजा है मेरा हमदम जिसका जोड़ा है मुझे बनना |
एक ऊन का गोला है ज़िन्दगी और हमें स्वेटर है बुनना ||

इक फूल है मेरा मौला इक डाल है सजाना |
इक काँटा है मेरा हरफन लाल खून है बहाना ||

शनिवार, मार्च 21, 2009

सुहागन

जो गोमुख से निकली मै और नदियाँ जुड़ती गयीं...
समंदर दिखा तो सब तितर बितर जा मिलीं उससे...
समंदर मेरा दूल्हा नदियाँ मेरी सौत...

शनिवार, मार्च 14, 2009

साँसे

मेरी साँसों चलो तुम्हारा उधार चुकाएं हम
मीठे नीम की एक प्याली चाय बन जाएँ हम
घूँट घूँट किसी के लबों को गरम कराये हम
इस बहाने तुम्हे और संग छोड़ आयें हम

मेरी साँसों चलो तुमसे घर का किराया वसूल कर आए हम
अपनी ज़िन्दगी का कुछ मोल लगाए हम
तमान यादों का दस्तरखान बिछाए हम
फिर यादों में जान डालने का जुर्म कराये हम

मेरी साँसों चलो तुम्हे छोड़ जाएँ हम
एक और जिस्म में तुम्हे फूँक आए हम
एक संसर्ग से गोपाल बनाए हम
तेरे मेरे मिलन को एक वज़ह दिलाये हम

रविवार, फ़रवरी 15, 2009

aviral

चलो कुछ नन्हा कर जाएँ
मिटटी की गाड़ी दौडाएं
कपडों को कीचड पहनायें
दांतों में टॉफी चिपकायें

चलो कुछ बूढे बन जाएँ
पके आम से मीठे हो जाएँ
आखों में मोटी चिपकायें
पापा के पापा बन जाएँ

चलो हम अविरल बन जाएँ
लिफाफों में ख़ुद को दफनायें
तुम सब में पहचानें जाएँ
यादों को मतलब दे जाएँ