रविवार, फ़रवरी 07, 2010

बेवजह

सूखे होठों में भीगी ओस ढूँढने चले हैं हम
सुनते हैं रूखे रुखसार में भी समंदर बहते हैं
चेहरे की नरमी में घुली है आंसूओं की बेशर्मी

सुनते हें बेबसी नमकीन होती है
बहती है आंसू बन बंजर चेहरों पे
अरमानों के ज़ख्म अब बह चले हैं शायद...

शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

श्वेत

श्वेत अम्बर से सजाया करिया तन को...
पीत वर्णित रस रंजित मन को
नग्न सांसें वृस्मिति कारक॥
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का करूं मोहन अइयो जो हमरे घर तुम॥
का बतलाऊं तुमका पुछिहो हमसे प्रश्न तुम ॥
मोहन हौ अबहूँ तुम हम रहे कोऊ कबहूँ
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हाँ जलिबय जब गंगा गोद हम
तब ना हाथ बंधियों अपने तुम
आइबे धुआं बन जब तुम तक
राख छोड़ आपन करमन की पाछे
तब न पूछ्यो प्रश्न हमसे तुम
बस जैबे तोहरे चरनन में हम ॥


मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

ईंट

कभी अनदेखे रास्तों ने तो कभी अनचाहे हमराहों ने
बेचैन किया मेरी तमन्नाओं को..

की जैसे एक बूँद गिरी हो पक्की ईंट पर
आई भी, समाई भी, और छोड़ गयी लालायित मुझे..

मिटटी थी मै जलने से पहले...
पानी डालो तो बह जाने वाली॥

बुधवार, अक्टूबर 14, 2009

ख्वाहिशें

तुम्हारी धडकनों ने उफनाय था जिनको
मेरी आंखों ने बहाया था जिनको

कैसे कह दूँ की वो जज़्बात नही,
इतना कुछ है पर कहने को कोई बात नही

ख्वाहिशें हैं सब...
स्त्री तन समान, ज़िन्दगी के लिबास में ढकी छिपी
पंचवटी में सीता का हिरन भी हैं
कामायनी में मनु का चंचल मन भी हैं

आज भी हैं कल भी हैं
कहते हैं ख्वाहिशें मरती नही
भूत बन मिटने को तड़पती हैं बेबस॥

रविवार, सितंबर 27, 2009

आंसू

एक सितारा इक दिन टूटा और जा बैठा कोठे पे
कोठी जाकर मैंने पाया कुछ दिल चुप चुप रोते से

तारे की माँ खोज में इक दिन मेरे घर भी आएगी
यही सोच कर हमने सबको जाने कहाँ छिपाया भी

तारे तुम्हरे आंसू थे और कोठी शायद यादें हों,

आंसू सूखे सदियाँ बीतीं फिर मेरी छत टपकाई क्यूँ...

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टपकती आज भी मेरी छत

बह जाता है आज भी चूना
शायद दीवारें आज भी प्यासी हैं...



शनिवार, सितंबर 26, 2009

रंग

तरसती निगाहें खामोश जुबां और धड़कती साँसे...ये कैसे खेल हैं मौला
जो पंख तुझको सौप दिए क्यूँ उनपे रंग चढ़ आता है मौला...
तमन्ना बन कर कोई फिर आज मेरी रूह चुराता है मौला...

बुधवार, सितंबर 09, 2009

सबब

सैर पे निकले थे दो नंगे पाँव
पीछे छोड़ एक गीले आँचल की छाँव

कभी मिटटी तो कभी पक्की सड़क की गोद में
दौडे हम कभी ख़ुद की कभी रहबर की खोज में...

सुनते हैं दौड़ते रहना ही ज़िन्दगी का सबब है...मर्म है...
हाँ मंजिलों के इस बाज़ार में ख्वाहिशें हैं...शर्म है...

होंगे कभी शर्मसार मेरे पाँव बीच बाज़ार में...
कहते हैं बस गई है मेरी रूह इसी इंतज़ार में॥

शुक्रवार, सितंबर 04, 2009

इल्म (ilm)

गुस्ताख दिल की कंपकपाती ज़ुम्बिशें
बतलाती हैं लहू अभी भी फिसलता है मेरी रगों में
सुनते हैं लाशें भी साँस लेती हैं आज कल

इल्म ही बांटा इल्म ही बटोरा हमेशा
कहते हैं इल्म के कटोरे टपकते हैं फाकामस्ती में
मेरा कटोरा मेरी भीख...मेरी ज़िन्दगी मेरी सीख...

बुधवार, जून 10, 2009

अबू

आवाज़ सवाल और खामोशी जवाब
टूटन बेइख्तियार और जिंदगानी बेवजह
कहीं टूटते सपने तो कहीं ज़िन्दगी बेसबब..

यादों में ही तो थे कल भी तुम...
हाँ बस यादें याद नही आती थीं कल...
लम्हे लफ्जों में बयान तो नही होते न दोस्त...

मिलेंगे काल्विन के किसी कोने में फिर वैसे ही॥
यादों में ही सही..
खुदा हाफिज़ मेरे यार

मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

नग्न

अँधेरा भी ओढा नफ़ासत भी पहनी
कभी सोच-समझ भी ख़ुद को पहनाया
कपड़े कपड़े होते हैं चमड़ी चमड़ी...

बुधवार, अप्रैल 22, 2009

बेअदब

ख्वाबों की सवारी है तो असलियत के नंगे पैर भी
आगे बेखौफ चौराहे है तो पीछे गरम सड़कें भी..
ज़िन्दगी हूँ मै... बेअदब रास्तों पर घिसलती...

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

मोल

मोल लगा कर अपने फ़न का क्या खोया और क्या पाया है
एक बादामी शाम गई और हाथ मेरे बस नाम आया है
नाम बिकते हैं शायद बाज़ारों में....

तुमसे बिछडे साल गए अब यादें भी धुंधलाती हैं
यादों में ढूंढूं तुमको तो याद स्वयं खो जाती है
पलकें घुलती हैं तब अंधियारों में...

एक शाम जब थक कर सूरज धरती में छिप जाता है
जब तारे बातें करते हैं और चाँद अलग पड़ जाता है
गूंगी साँसे सिहराती हैं तब कानों में....

सोमवार, मार्च 30, 2009

मेरा बचपन

गीली साँसों सा महकाता
कल कल आंसू नदी बहाता
शेरू की पूँछ में खो जाता
मेरा बचपन

याद आती नानी की पुडिया
एक गन्ना और इक गुडिया
रेल की पटरी उड़ती चिडिया
मेरा बचपन

इक डिबिया में जुगनू पाले
तितली को भी दाने डाले
जब घूमे मिटटी को साने
मेरा बचपन

पापा के स्कूटर की सीट
मम्मी की गोदी में नींद
साइकिल की घंटी सा स्वीट
मेरा बचपन

:-)

शुक्रवार, मार्च 27, 2009

ऊनी मोजा

एक डोर है हमसे तुम तक और एक फासला है तय करना |
एक पगडण्डी है टूटी सी और तमाम क्यारियों से है गुज़रना ||

एक खोया मोजा है मेरा हमदम जिसका जोड़ा है मुझे बनना |
एक ऊन का गोला है ज़िन्दगी और हमें स्वेटर है बुनना ||

इक फूल है मेरा मौला इक डाल है सजाना |
इक काँटा है मेरा हरफन लाल खून है बहाना ||

शनिवार, मार्च 21, 2009

सुहागन

जो गोमुख से निकली मै और नदियाँ जुड़ती गयीं...
समंदर दिखा तो सब तितर बितर जा मिलीं उससे...
समंदर मेरा दूल्हा नदियाँ मेरी सौत...

शनिवार, मार्च 14, 2009

साँसे

मेरी साँसों चलो तुम्हारा उधार चुकाएं हम
मीठे नीम की एक प्याली चाय बन जाएँ हम
घूँट घूँट किसी के लबों को गरम कराये हम
इस बहाने तुम्हे और संग छोड़ आयें हम

मेरी साँसों चलो तुमसे घर का किराया वसूल कर आए हम
अपनी ज़िन्दगी का कुछ मोल लगाए हम
तमान यादों का दस्तरखान बिछाए हम
फिर यादों में जान डालने का जुर्म कराये हम

मेरी साँसों चलो तुम्हे छोड़ जाएँ हम
एक और जिस्म में तुम्हे फूँक आए हम
एक संसर्ग से गोपाल बनाए हम
तेरे मेरे मिलन को एक वज़ह दिलाये हम

रविवार, फ़रवरी 15, 2009

aviral

चलो कुछ नन्हा कर जाएँ
मिटटी की गाड़ी दौडाएं
कपडों को कीचड पहनायें
दांतों में टॉफी चिपकायें

चलो कुछ बूढे बन जाएँ
पके आम से मीठे हो जाएँ
आखों में मोटी चिपकायें
पापा के पापा बन जाएँ

चलो हम अविरल बन जाएँ
लिफाफों में ख़ुद को दफनायें
तुम सब में पहचानें जाएँ
यादों को मतलब दे जाएँ

रविवार, दिसंबर 28, 2008

aadhe adhoore

मुफलिसी की दौड़ में चंद सपने दौडाए हमने....
एक सपने को जिता बाकी सब कहीं दूर छोड़ आए हमने.......

ज़िन्दगी की रेत में चंद चेहरे गहराए हमने.........
कुछ किस्से याद रख्खे कुछ मिट्टी में दफनाये हमने....

मासूमियत के तंदूर में कुछ नाउम्मीदी के कबाब पकाए हमने...
काग़ज़ की रोटी में एक बूँद टाट के पैबंद लगाए हमने....
फिर लहू की चटनी संग एक ढाबे में बेच आए हमने

Muflisi ki daud(race) mein chand (few) sapne daudaye hamne...
ek sapne ko jita baaki sab kaheen door chhod aaye hamne...

zindagi ki ret mein chand (few) chehre (faces) gehraaye hamne....
kuch kisse yaad rakkhe kuch mitti mein dafnaaye hamne....

maasoomiyat ke tandoor mein kuch naummeedi ke kabaab pakaaye hamne..
kaagaz ki roti mein ek boond taat (jute) ke paiband (filler) lagaaye hamne...
phir lahoo ki chatni sang ek dhaabe pe bech aaye humne...

शनिवार, जनवरी 26, 2008

ख़ाक

मुसाफिर बनकर भी ज़मीन्फरोस्त रहा मैं,
अब ज़मीन ही मेरा सफर है...
मौसम दर मौसम...ख्वाहिश दर ख्वाहिश....

रोज़ आते हैं रिंदेयहाँ..जाने किस किस से खफा....
गो खफानावाज़ होता तो हम भी चादर चढा आते
पर चादर तो नही बस इक कफ़न है..मेरा लिबास--ख़ाक ...

रविवार, अक्टूबर 14, 2007

kaanch

tumko utaar doon to pair bachaa kar chalna hoga...kaheen kaanch na gad jaaye
tumko pehne rahoon to haath sambhaal kar rakhne honge...kaheen kaanch na toot jaaye
choodiyon....kabhi mujhe bhi pehno...

tumhaari khankhan ....
meri aankhon ki mehroomiyat ki daastaan...

ki shayad kabhi tum faqat tasveer mein hi nahi thi...

woh gaanw ki maniharin...woh shahar ke muslim choodiwale...
woh masjid ki ote mein choodi bechte feriwaale
mausi didi bua...amma...

mera Aaj ek tooti choodiyon ki jhalar, seeli hui mere ghar ki deewar pe tangi..
mera har ek Kal ek lal neeli peeli choodi... meri maa ke haath pe saji...

aur ek Kal mera intezaar kar raha hai...mombatti ban kar...
choodiyaan tod.. mom se pighla.. wall hanging jo banani hai...

suna hai ab to choodiyaan bhi plastic ki hi hoti hain..

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meri kalam ne bhi kaanch kho diya hai..
meri kalam ne plastic apna li hai..
suna hai plastic pighalti nahi...pighne ko tarasti hai bebas...

रविवार, अप्रैल 29, 2007

tanaa

khair chhodo sanam...kab tak chaloge mere sang tum..har pathik ki ek manzil hoti hai...aur mai to khud ek raasta hoon...saath chalunga jab tak tum chaloge...saath chhodoge jahaan waheen rahunga...tumhari talaash mein..tumhare intezaar mein...bebasi se baahien phailaunga zaroor...magar bebasi ki baahein auron ko bhi bebas kar deti hain..midas touch se....
kahaan tum kehti thi ki yeh paras ki sadak hai..

khuda haafiz zindagi...
mai maut hoon tumko kya dunga....
apne hi tareeke se...
shayad tumko raasta dikhaana hi meri manzil hai...
tumko tumhari manzil tak le jaana hi mera wajood..
tumhare pairo tale tumhe zameen dena meri fidrat..

tum kehti thi ki maut aaye to tumhari baahon mein hi...
raah pe marno waalo ko cheel utha le jaati hain..unhe dharti kahaan naseeb...

dharti meri maa hai...meri manzil hai...sadak hoon...shayad maa apni baahon mein bhar le...

maa apne aanchal mein chhipa lo aaj phir...
tumhari bahut yaad aati hai...
kuch nahi soojhta...tum hi bulaa lo....ek baar phir apne seene se lagaa zindagi ki do boondein bhar do mujhme...
shayad ek mohlat aur mil jaaye...dhoop se...

vidambanaa to dekho...uske aanchal mein maut nahi maang sakte jahaan chain se marne ka bharam hai...

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Ghalib-e-khasta ke bagair kaun se kaam band hain...
royiye zaar zaar kya...keejiye haai haai kyun
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:-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-)
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mere patte sookh gaye hain to kya...
abhi mera tanaa choolhe mein jalne laayak nahi hua hai...
tanaa abhi bhi geela hai..kulhadi gadaa kar to dekho...

मंगलवार, सितंबर 05, 2006

Raaste

anjaane raasto ke ajnabee ped...
pehle to chhaaya dete the mujhe...

par aaj jab wahi anjaane raaste jab jaane pehchaane ho chale hain...
jaane kyun ped bhi ab mujhe ajnabee na jaan chhaanw dene se mukarte hain...

kabhi lagta hai woh raaste jo chir parichit the,
jinpe aankhein moonde hum barso se chale aa rahe the..
jinpe chalkar bhi hum unke astitva se mukarne ka bhi sangharsh nahi karte the....
aaj wahi raaste itne ajnabee se deekh padte hain...

woh raaste jinhone mujhe in raasto par laa khada kiya..
woh raaste jo shayad kaheen in raasto par chal ke mil jaate hain...

shayad raasto ki kismat anjaano ko apnaane aur jaane pehchaano ko kho dene ki hai
anjaan raahi jo apni pyaas mita kar waapis nahi lauTte
shayad raaste bhi unki pyaas bujha unhe khojne se darte hain

darr shayad anjaane se jaane ho jaane ka
darr shayad darakhto ko chhaanw baasi ho jaane ka...

par kya pathik badalne se chhaanw taaji reh jaati hai...
kya roz darakth ek hi chhaanw dete dete ghutan nahi mehsoos karte...

shayad isee bhulaawe lo jhuthlaa dene ke liye woh naye pathik ki talaash mein bechain dikhte hain....
har ghadi har roz har pal.....

शनिवार, सितंबर 02, 2006

dhaage

ek chaadar hawa ke jhonke se ud kar aayi thi...
chaadar mein kuch aaadhe adhoore phool bane the...

phoolo ko poora karne mein bhool gaye ki woh asli nahi
kabhi sui ungliyo pe chubhi to maan lete ki woh kaante hain...
koshiso se phoolo mein jaan daalte gaye...
achanak ek din dekha ki phool mehakne lage hain...

phool cheekh cheekh kar kehte ki woh dhaage hain, bikhar jaayenge...
magar unme se aati khushboo kehti tumhi ne mujhe piroya hai bikharne thode hi doge...

kabhi mai phoolo ko poora karta to kabhi phool mujhe...
kabhi mai chaadar ko odh leta kabhi chaadar mujhe odh leti...

phir ek din achaanak ek dhoban aayi apni chaadar ki khair jaan ne...
chaadar se boli apne jism mein suiyaan piro kar kya paaya hai tumne...
yeh jise tum phool jaan rahi ho yeh rang jo tumme bhar gaye hain...
tum chaadar thi safed...rang bharne waale aksar rang badal jaate hain...

dhoban ne chaadar ko dhoya..geelepan mein chupke se chaadar royi...
idhar meri suyiyaan kho si gayi daraaz ke kisi kone mein...

dhaago ki kismat hai,
khud hi phool bante hain,
khud hi mehakne lagte hain...
bas jaate hain ek chaadar mein,
to nikal hi nahi paate bina toote..

शनिवार, अगस्त 26, 2006

parwaah

tumhari aankhein ....
mere wajood ko wajah deti...
meri har wajah ko wajood deti...

meri ummeedo mein saansein bharteen....
meri saanson ko ummeed karne ki anjaani wajah de jaati..


sookhi hui tumhari aankhein...
jaise bewajah hi mere wajood ko lalkaarti...
jaise bewajood mere hone ki har wajah ko kar jaati...

ummeed bhi saans lene se beparwaah ho jaati jinhe dekh...
saansein bhi jeevan bharne mein naummeedi jataati jinhe dekh...

geeli geeli tumhari aankhein

mere wajood se bewajah ke sawaal poochhti...
har wajah ke wajood ko pehchaanti bhi aur unse anjaan bhi...

ummeed mein pagli aankhein meri saansein sokh lengi sab...
meri pagli saansein bhi shayad isee ummeed mein bechain ab......

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बुधवार, अगस्त 02, 2006

kaaghaz

maa ne ek kora kaagaz diya tha...

maine pehle chalk se likhne ki koshish ki...
bahut kuch likha...magar kuch nahi dikha...

phir maa boli pencil se likho beta...
pencil chalaayi..khoob gadaayi...todi...chheeli..ghisi..

thook se mitaane mein kaagaz kaala kar gaye...
rubber khareeda ragdaa phir bhi nishaan chhoot gaye...

us phat chuke kaagaz ko copy mein dabaa kar rakha,
magar woh pehle jaisa na huaa, na nishaan mite..

tab kalam khareedi...bade man se syaahi bhari..giraayi..bahaai..
kaagaz pe nishaan daale...thook se ragda...phaada..

dost bole pen use karo...koshish ki..woh na chali...
kaagaz pe line kheenchi magar pen na pighli...

yeh kaagaz meri maa ne mujhme jo phoonki thi woh zindagi thi...
shayad aaj bhi us phat chuke kaale ho chuke kaagaz ko talaash hai..
kisi ki jo likh sake uspe kuch sundar...
jo na jawaani ki pen ki tarah sakth ho...
jo na yauwan ki maasoom kalam ho...syaahi se dabdaaati...
jo na bachpan ki anjaan pencil ho...chhil chjil mit jaane waali..
jo na abodh chalk khadiyaa ho...jise samajh bhi na sake koi...

phir ho to kya ho...


शुक्रवार, जून 09, 2006

muntazir

waqt tujhme kitna bachpanaa hai...
ghadi mein shakl aur phir bhi aazaad hai tu ..
haan apno ke paas hai shayad tabhi beparwaah hai tu..
ghabraahat ki dhak dhak mein bhi khamoshi mein masroof tu..
bhagte bhaagte na jaane kyun saham gaya hai tu...


yeh waqt bhi kitna nasamajh hai,

ruk jaata hai bina soche samjhe...
shayad saagar ki ret ka geelapan hai isme,
sookh jaata hai bina soche samjhe...
ya tumhari aankho mein chhipa moti hai woh,
beh bhi nahi paata hai bina soche samjhe...

kabhi isey bhi kisi se mohabbat hoti,

to yeh bhi ro leta bina soche samjhe...
kal isey bhi kisi ka aanchal mila hota,
to yeh bhi so leta bina soche samjhe...
beparwaah aaj na hota to kya hota,
baarisho ne rakha jise pyaasa bina soche samjhe..
aankhon ke moti patthan ho na jaate,
gar haath se chhua hota unhe kisi ne binaa soche samjhe....

waqt tujhe kiski ummeed hai..kiska intezaar hai...

बुधवार, जून 07, 2006

aadat

saansein bhi kya ajeeb hoti hain,
hamaare liye hum mein qaid hoti hain..

sochta hoon kyun aakar basti hain hummein,
shayad unko bhi ek pehchaan ki talaash hoti hai...

talaashte talaashte ek din saansein,
apni saanson mein hi kho jaati hain...

shayad kho jaana mein hi sachhi pehchaan hoti hai.......


raatein bhi kya ajeeb hoti hain,
hamaare liye jagti hain hamaare liye soti hain,

akelepan mein bhi mere saath hoti hain,
mujhe meri parchhaai se bhi chura leti hain,

jaagti raatein, soti raatein...
hazaar baatein, khaamosh baatein...
kabhi cut jaati, kabhi kaat jaati hai,
magar badki didi si apnapan de jaati hain....

shayad raatein khud bhi nipat akeli hoti hain......


baatein bhi kya ajeeb hoti hain.
kabhi tumse kabhi khudse hoti hain...

tum bin hoon to mil jaati hain...
tum sang hoon to kho jaati hain...

phir bhi bin bole hi hummein,
jaane kitni baatein ho jaati hain...

shayad baatein bholepan mein sab kuch keh jaati hain...
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रविवार, मई 28, 2006

khaatir

ek haar mein aastha ki khaatir...
bewajah jeetne ki ho ummeed aur haarne ki ho chahat...
pal bhar ko maula yeh sab ek khel banaa de...

ek shwas mein aastha ki khaatir...
maut oob jaaye jisse shayad kuch aisi zindagi ki ho aahat...
pal bhar ko maut ko bhi zindagi dila de..

ek pyaas mein aastha ki khaatir...
pyaase marne do dost, kaun jaane mil sake shayad isee mein raahat...
pal bhar ko pyaase ki aas mitaa de...

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ek aanchal mein kuch sheeshe the
chehra dekhne ki koshish bhi ki

sheeshe shayad darji ki preyasee ne taanke the, har sheesha mein ek aanso ki dhundhlaahat

मंगलवार, मई 23, 2006

cheekh


aaj phir lafzo mein geet hain,

par tumhe phursat hai bhi aur nahi bhi
aaj phir saanse chal padi hain,
par zindagi ko zaroorat hai bhi aur nahi bhi
aaj phir tumhe aawaaz dene ko dil karta hai,
par dhadkan cheekh paati hai bhi aur nahi bhi
aaj phir bachpan chhoota hai,
par rona aata hai bhi aur nahi bhi

kaun jaane,
kal phir se adhar hilenge,
par geet bane na bane
kal phir maut se mohlat milegi,
par jeene ki wajah mile na mile
kal phir tum sunna chahoge,
par jubaan khule na khule
kal phir aanso beh niklenge,
par bachpana rahe na rahe..


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pyaasi zubaan pe lahu ki ek dhaar
nange pairo pe kaanto wali taar

bechaara taar, pyaasi zubaan ki takleef na dekh paaya..
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